गरीबों की बस रोडवेज vs कम्पनी की प्रचार गाड़ी

गरीबों का हाल जैसा होता है, ठीक उसी प्रकार उ.प्र. रोडवेज बस भी अपनी दासता पर दुखड़ा सुनाते हुए नजर आती है। सीट के अंदर पीले गद्दे दिखाई देते हैं, जैसे कोई पीला सोना लगा हुआ हो। खिड़की के बाहर लोहे की जाली लगी हुई है,उसके सीसे ऐसे हिलते, जैसे कोई उसे अपनी बाहों में इस कदर जकड़ा हुआ हो और वह चाहता है कि कब मैं बाहर निकल जाऊं। इसकी खिड़कियाँ हिलते हुए खनखनाहट की आवाज लगाती हैं, जैसे कोई चूड़ी बेचने वाला सौदागर राह से गुजर रहा हो। जब किसी चंचल-सी सड़क से गुजरती तो इंसान मदमस्त होकर झूला झूलता है। ये अपनी धुन में बलखाती हुई ऐसे हिलते-मिलते नागिन की तरह फूँक मारती हुई आगे बढ़ती है। अगर कोई यात्री किसी बात को लेकर परेशान होता है तो ये उसको झकझोर करके रख देगी और वह अपना गम भी कुछ पल के लिए भूल जाता है। यदि कहीं जाम लग गया तो कोई दिक्कत नहीं, मुस्कुराते रहिए क्योंकि आप सफर कर रहे हैं। इसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम ही होंगी। कई वर्षों से मैं देख रहा हूं रोडवेज की वही खस्ताहाल ज़िंदगी न कोई रंगत न ही कोई रोशनी, न कोई रिपेयर ना कोई टाइम, अपने मन से चलता है और अपने मन से सफर करता रहता है । इसके बारे में कोई बात ही नहीं। इसमें CCTV लगे हुए थे, कुछ बसों को छोड़कर निकाला जा चुका है, ऐसा लगता था केवल जनता को भ्रम में रखने के लिए लगाया गया हो। लगभग दो साल तक लगे रहे, अब निकाला जा चुका है। लेकिन जनता के पैसे का नुकसान तो हुआ ही। एक सीसीटीवी कैमरे की कीमत क्या होती है ये आप google कर सकते हैं। सब निकाल करके, कहां रखा गया पता नहीं।उनका भविष्य में यूज होगा या नहीं इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। मैं जिस रास्ते के बारे में बात कर रहा हूं। वह Mugalsarai जो वर्तमान में दीनदयाल नगर के नाम से जाना जाता है। इस रास्ते पर हजारों गाड़ियां चलती हैं। कोई जीप वाला या ऑटो वाला इस रास्ते से जाता है, ईधन और एनर्जी वेस्ट होता है साथ ही साथ उसके हार्डवेयर पार्ट्स भी खराब होते हैं। लोगों को ध्यान तब आता है, जब इन जैसी सड़कों से गुजरते हैं। क्षेत्र के जो सांसद होते हैं उन्हें इस बात पर गौर करना चाहिए, की उनके क्षेत्र की अधिक प्रयोग वाली सड़कें बेहतरीन हो। इसी पर रोडवेज बस चलती हैं जिसे गरीबों की बस कहना गलत नहीं होगा। इसकी तस्वीर अगर आपको देखनी हो तो एक बार आप उस बस में बैठे जो लंका, BHU से चलती है । चंदौली के लिए या मुगलसराय के लिए। जैसा कि मैंने पहले बताया था इसकी चाल बहुत ही मदमस्त होती है क्योंकि जब भी बल खाती हुई चलती है। आप तनाव में होंगे तो वो भी रफूचक्कर हो जाएगा। आपको एहसास नहीं होगा। आपको म्यूजिक सुनने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, क्योंकि इसके हर पुर्जे से अलग-अलग प्रकार की आवाज निकलती हैं जैसे दरवाजे के अंदर के ढीले शीशे और खिड़कियों से झन-झन की आवाजें, मानो बाराती के आगमन पर बैंड-बाजा, कुछ नागिन की धुन बजा रहे हो। और टूटी हुई लाइट क्या कहने। इन सब की मिश्रण से एक ऐसी म्यूजिक का कंबीनेशन बनता है। जिसे सुन कर आपका मन प्रफुल्लित हो सकता है। 1 फरवरी 2020 को जब मैं घर जा रहा था उस वक्त रोडवेज बस में एफएम और ड्राइवर के लिए पंखा लगा हुआ देख कर मैं थोड़ा चकित हुआ कि रोडवेज बस में ये सब...गजब, तो मैंने कंडक्टर साहब को पास बुलाकर पूछा । सवाल: सरकारी बस में रेडियो स्टेशन और ड्राइवर साहब के लिए पंखे, यह बिल्कुल अनोखा-सा मालूम हो रहा है। जवाब: अपने पैसे से लगवाया गया है। सवाल: पीछे की दो सीटें किसने लगवाया है भाई? जवाब: उन्होंने कहा सरकारी बाबू लोगों ने लगवाया, पीछे दो ऐसे सीट थीं जो बिल्कुल नेस्तनाबूद हो जाने पर उनके जगह दो नई लकड़ी की कुर्सी लगवाई गयी थीं। जब कभी आप उत्तर प्रदेश रोडवेज बस से सफर करें तो गौर से ड्राइवर के पास की गेट को देखिए। अधिकांश बसों के गेट किसी रस्सी से फंसे हुए मिलेंगे, कुंडिया टूटी हुई,बम्पर का अन्दर की ओर धसा होना जैसे कोई कह रहा हो...भाई हमें भी बाहर निकाल दो। बैक लाइट और ना तो फ्रंटलाइट सही मिलेंगे, जवाबदेही के नाम पर ठेंगा दिखाते हुए,भाग्य भरोसे चलते हुए रोडवेज बस। बनारस से महेंद्र नाथ पांडे जी के क्षेत्र में चलने वाली बसें 3:00 बजे के बाद बंद हो जाती हैं, यात्रियों को कितनी मशक्कत करनी पड़ती है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सफर करने वाला इस बात को अच्छे से समझ सकता है। इस क्षेत्र की सड़कों का विकास कुछ इस प्रकार होता है जैसे किसी इंसान का हड्डी टूट जाए और बस साधारण सा plaster बांधकर छोड़ दिया जाये। पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर कभी जाइए तो वहां के बस स्टैंड पर आगमन करके मन को प्रफुल्लित करें। आपको इस बात की अवश्य अनुभूति होगी कि गजब का विकास हुआ है। बगल में रेलवे की बड़ी सी नाली,3 चार कुत्तें और गायों का बस स्टैंड में आराम फरमाना, ऑफिस का खंडहर हो जाना,और हमेंशा की तरह ताले का लटका होना,इस मनोरम दृश्य को देखकर, गांव की एक कहावत याद आ जाती है कि, "सब कोई चलगइल बुढ़वा लटक गईल"।
रोडवेज बस और Mugalsarai To Lanka BHU अब सवाल ये है कि क्या करें? ज्यादा मन हुआ तो सिस्टम को गाली दे सकते हैं, लेकिन गाली हमारी संस्कृति में नहीं है। पर हां कुछ जगहों पर बरदास्त के बाहर जब बात हो जाती हैं, तो कभी-कभी गाली निकल जाती है, यदि आप गाली देते हैं तो आप एक जिम्मेदार नागरिक नहीं हो सकते हैं हां सवाल उठाइए जितना हो सके। जब चुनाव का गरम माहौल होता है, अगर आपके गांव कोई नेता वोट के लिए आता है तो उसे कुछ दस्तावेज मांगे जैसे कि अगर वह क्षेत्र से जीते तो, उस क्षेत्र के लिए कौन सा काम करेंगे। जिससे अधिकांश लोगों को लाभ पहुंचे, चूँकि हमारे क्षेत्र के सांसद ऐसे हैं जो बड़े गांवों को छोड़कर छोटे गाँवों में जाना पसन्द नहीं करते।और उन्हें तवज्जो देना पसंद नहीं करते। हमारा भी फर्ज बनता है कि उन्हें इस बात का अहसास दिलाएं कि हम भी लोकतंत्र के वही हिस्से हैं, जिन्होंने अगली बार वोट देकर आपके जीताया था,लेकिन ऐसा कोई करने वाला नहीं। अगर कोशिश भी करेगा तो घरवाले डांट देंगे। उस गांव के एक-दो रईसज़ादे उनके आगे पीछे घूमते हुए अपने स्वार्थ की पूर्ति की पूर्ती करते रहेगें कि अगर नेता जी जीत गये तो कुछ न कुछ अपना फायदा हो ही जायेगा। और हुआ भी वोटों की दलाली करने के लिए एक बाइक भी मिली। हमारे क्षेत्र का सांसद या विधायक कौन हो सकता है ? इस पर हम सबको मिलकर चर्चा करनी चाहिए कि अपने क्षेत्र में किस सामाजिक व्यवस्था की कमी है,ब्लाक स्तर के अस्पताल दुरुस्त हों, सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों से जवाबदेही,स्कुलों में कुछ खेल के सामान ऐसे ही अन्य सामाजिक जरुरतों को पूरा कराना। अगर कुछ समस्या पैदा होती है तो उनके पास जाकर अपनी बात रख सकें। उनसे क्षेत्र के विकास के बारे में बात कर सकें। चूंकि एक सांसद के निधि में सामाजिक कार्यों के लिए एक अच्छा अमाउंट आता है। यदि आप टीवी एक्टर, फिल्म स्टार या क्रिकेटर को ही सांसद बना दीजिए, तो फिर उम्मीद मत रखिये। वह अपनी दुनिया में मगन होंगे। फिल्म स्टार फिल्म बनायेगें, क्रिकेटर क्रिकेट बोर्ड के पद सम्भालने लगेगें। हम और आप कुछ भी नहीं कर सकते। मथुरा की सांसद वोट मांगने की बारी आई तो किसान के खेतों तक पहुंच गयी, एक पत्रकार द्वारा उनसे पूछा गया कि आपने इस क्षेत्र के लिए क्या किया? कुछ रटे-रटाये जवाबों के अलावा उन्हें यह भी पता नहीं था। तो ऐसे उम्मीदवार को चुनिए जो आपकी भाषा बोले, आपकी बातें सुने। क्योंकि हम सब जानते हैं लोकतंत्र में जनता राज करती है अगर इसके विपरीत होगा तो समाज में अराजकता ही फैलेगी। हम और आप इस पाप के दोषी होगें।

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