सबकर मज़बूरिये होला vs विकास

 विक्रम, आटो का बड़ा भाई कहना यहां गलत नहीं होगा।  जिसमें 17 लोग आड़े-तिरछे बैठे हुए और 3 यात्री का गेट पर खडे होना, साथ में रोड का क्या कहना। जगह-जगह पर सरकारी गड्ढे,जिसमें टायर का ऐसे  बुरा हाल हो जाता है, जैसे बचपन में साइकिल के टायर पर डंडा मारते हुए चलाना, जो बलखाती हुई मदमस्त होकर कभी इधर-उधर चलती थी।

चहनियां से मुगलसराय(दीन दयाल उपाध्याय नगर) का सफर न जाने कितने किये खुद को, वादे तोड़ने पर आमादा करता है, कि अब ऐसे सफर नहीं करना,लेकिन मजबूरियों के सामने अक्सर इंसान  अनगिनत किये वादे तोड़ता है।
सफर के दौरान आपके पैर या कमर में मोच आये,फर्क नहीं पड़ता। मुझसे जब रहा नहीं गया तो मैंने ड्राइवर को आवाज लगा दी कि...भईया साइड लगाइये...अब बर्दाश्त नहीं होता। गाड़ी रुकती है...लोग ऐसे देखने लगते हैं,जैसे क्रिकेट,फुटबाल का गेम, टीम आपकी वजह से हार गई हो।
अब सवाल जवाब का सिलसिला:
भइया बीस लोग इसमें बैठे हैं... हद है।
जवाब :  सबकर मज़बूरिये होला ।
सवाल:तो आप उसी मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं
अब कोई जवाब नहीं... बस लोगों की फुसफुसाहट और दिल की भड़ास कुछ देर तक निकलती हैं और झूलती हुई विकास आगे की ओर चल देती है।
अब दिल में यही ख्यालात आता है कि इस समस्या को कैसे दूर किया जाए...किसको फ़ोन किया जाए या कहाँ कंप्लेन किया जाए।इसी सोच में कुछ वक्त गुजर जाते हैं और मुगलसराय आ जाता...अब आगे सफर करने वाला इंसान बड़ी मशक्कत से दूसरी गाड़ी पर बैठ कर दूसरे ख्याल में खो जाता है। और वो आवाज,ख्यालात किसी कोने में दफ़न हो जाते हैं।

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