कुछ सफर की यादें साझा करना जरुरी लगा तो पहला Article लिखा गया....जरुर पढ़े!
1. गरीबों की बस उत्तर प्रदेश रोडवेज बस बनाम कम्पनी की प्रचार गाड़ी Click here for read Story
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3. बिजली बिल औऱ मीटर पढ़ने के लिए यहाँ Click करें
4. सबकर मजबूरिये होला बनाम विकास पढ़ने के लिए यहां Click करें
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Whatsapp एक कथा
अच्छा लगता है किसी से बात करना। किसी अपने और पराये से chatting करते-करते अपनापन का एहसास दिलाता रहता है। घर बात करने का मन किया तो अधिकतर वीडियो कॉल का इस्तेमाल किया जाने वाला एप्पलीकेशन, कमाल का है न! जब किसी के पास अपना personal फोन आ जाता है, तो उसी वक़्त वह शख्स Watsapp University में दाखिला ले लेता है। इसके लिए किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती है। Syllabus में Copy, Paste, Forward को अनिवार्य रूप से शामिल किया किया जाता है। जिससे किसी के दिल के पास कोई दस्तक भी दे सकता है, या उससे बहुत दूर भी जा सकता है।
Watsapp चलाने वालों की category:
आफिस में duty करने वालों के पास दिनभर वर्क का लोड रहता है, इनके द्वारा ऑफिस जाते समय या आते समय social मीडिया का इस्तेमाल किया जाता है। लंच होते हैं मोबाइल के पास चले जाना जैसे कोई महबूबा पास बुलाती हो और एक घण्टे कब निकल जाते हैं खबर ही नहीं मिलती। शाम को फ़ोन चलाते वक़्त कुछ copy, paste, फॉरवर्ड, और reply पर समय व्यतीत किया जाता है। यदि किसी धर्म विशेष की बात आती है तो उस msg को फॉरवर्ड करना। किसी Idiology से प्रभावित हैं तो उनके विचार, भाषण को प्रचारित करना। कुछ Facebook, यूट्यूब के लिंक को शेयर करना।
अब इतना समय किसके पास होता है कि उस msg या वीडियो की तथ्यता को जांच या परखे।
Watsapp Group:
इनका भी निर्माण विशेष कार्यों के लिए किया जाता है। Family group, आफिस वर्क, Friends Group, College, हँसी के चुटकले, धर्म विशेष के फ़ॉलोअर्स, Brainwas करने वाले group, फलाने के फ़ॉलोअर्स, इन जैसे तमाम group मिल जाते हैं, जिनमें प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को ज्ञानी मानता है। Watsapp University के ज्ञान से कई मोहब्बत करने वालों के घरों को तोड़ा गया। कई मोब लॉन्चिंग जैसे काम को अंजाम दिया गया। बाकी कुछ बच भी गया तो news room वालों ने नफरती डिबेट को आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे साथ पढ़ने वाला दोस्त, शिक्षक उन नफरतों का शिकार होने लगते हैं। और ऐसा करने वाले अपने आपको देश का सच्चा सिपाही भी बताते हैं।
कमाल की बात है न कि नफरत का बीज बोकर, किसी समाज को गंदा किया जाये। फिर शराफत का चोला ओढ़ लिया जाये। समाज में इतने मसायल, जरूरियात हैं कि जिन पर दिनभर चर्चा किया जा सकता है, अगर कोई शख्स किसी सरकार का बचाव करने लगे तो उनके दलाएल भी कमाल के होते हैं। जब आप पूछेंगे आम के बारे में तो, वो इमली की बुराइयां करने लगते हैं। मेरी एक Student रही बनारस की उनके कारनामों ने मेरी आँखें खोल दी। जिनका सम्बन्ध IT-CELL से था। तब मैंने IT- CELL के बारे में जाना। कि कैसे किसी नौनिहालों का brain wash एक Group बनाकर करके किया जाता है। चाहे वह Watsapp University हो, इंस्टाग्राम, या facebook इनमें एक group में कभी हज़ारों या लाखों की संख्या में office staff,कालेज student जुड़े हुए होते हैं। जिनका काम होता है किसी content को दूसरे group में फॉरवर्ड करना। इस तरह से किसी अफवाह या साजिस को बड़े पैमाने पर अंजाम दे दिया जाता है। फिर कोई बहिष्कार करने लगता है, कोई जनसंख्या नियंत्रण करने लगता है। उसके बाद समाज के वो अहम मुद्दे किसी हवा की तरह गायब हो जाते हैं।
@SabeelAhmad
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घर और रिश्ते
मध्यम वर्ग की कहानियां आपने बहुत सुनी होगी या पढ़ी होगी, लेकिन ये शायद अनसुनी, और अनकही दास्तां में से एक हो मालूम होती है
Income
Middle Class फॅमिली में income का स्रोत उतना ही होता है जिससे कि घर के खर्च थोड़े नमकीन थोड़े मीठे से चल सके। यदि थोड़े अधिक पैसे की आमदनी होती है तो वो पैसे बचाये नहीं जा सकते। नए जरूरत को पूरा करने के बजाय उन्हीं पुरानी जरूरत को पूरा करने में पैसे खर्च हो जाते हैं। उनके घर के बच्चों के कंधों पर जिम्मेदारिया किसी गधे की तरह लदी होती है। जैसे ही एक काम पूरा होता है दूसरा काम तुरंत लाद दिया जाता है। इस तरह से पूरी उम्र घर के जरूरतों को पूरा करने में वक़्फ़ कर देते हैं।
नई-पुरानी बीमारियाँ मुफ्त में मिलती हैं। चूँकि पैसा प्रत्येक समस्या का हल नहीं, लेकिन अधिक समस्याओं का समाधान पैसे से हो जाता है।सेविंग नाम की चिड़िया इनके घर कुछ दिनों की महमान होती है। घर का राशन, बच्चों के स्कूल, ट्यूशन, का खर्च तो होता ही है।
लड़के की शादी:
इंसान अपनी अना और लालच में इतना गुम हो जाता है कि सही और गलत, जुल्म और ज़्यादती में फर्क करना भूल जाता है और बोल पड़ता है कि पड़ोसी या रिश्तेदार को दहेज में इतना मिला है तो हमें भी तो मिलना चाहिये, और यही कहते हैं कि 'हमारे लड़कवा में का खराबी बा। जब फलनवा के लड़िकवा के इतना कुछ मिलल'। प्रत्येक मा-बाप अच्छे रिश्ते की तलाश में रहते हैं, लेकिन तब कुछ मा-बाप को क्या हो जाता है जब अपने लड़के की शादी करने जाते हैं और लड़की वालों के सामने अपने फरमाइश के लिस्ट सामने रख जाते हैं। लड़का आफिस में क्लर्क है तो नकद 2 लाख, किसी फ़ोर्स में है तो 3 से 4 लाख उसके साथ नई मॉडल की गाड़ी भी होनी चाहिये। अगर लड़का कोई temporary जॉब कर रहा है तो कम से कम 40 से 80 हजार रुपये नकद,मोटरसाइकिल, सोने की अंगूठी और सोने की चैन चाहिये। कुछ माँ-बाप की सोच मुख्तलिफ मालूम होती है और कहते हैं कि 'हमने अपने लड़िकवा के एतना पढ़ाया है और बहुत पइसा खर्च हुआ है उ कौन देगा'। इस तरह के कुछ शरायत दिखायी देने लगते हैं।
लड़कियों की शादी:
पिता किसी सरकारी महकमें से ताल्लुक रखता है या जमीन है तो गिरवी रख देता है इस तरह कुछ इंतजाम कर देता है। जिनके पास नौकरी नहीं होती उनके हालात का बयान करना बड़ा मुश्किल हो जाता है।
बच्चियों के शादी के खर्च के नीचे दबना पड़ता है। दहेज के इंतजाम के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है बारातियों का स्वागत खान-पान में कोई कमी नहीं छोड़ी जाती। यदि कुछ गलती भी हो जाये तो ससुराल वाले उस लड़की को ज़िन्दगी भर ताना मारते रहते हैं। किस तरह से लड़की का बाप इंतेजाम करता है वो ऊपर वाला ही बेहतर जानता है। कुछ उधार मिल जाये तो ठीक, नहीं तो ब्याज पर पैसे लेने पड़ते हैं और ज़िन्दगी भर चुकाते-चुकाते नाना प्रकार की बीमारियां और डिप्रेशन से दम तोड़ देता है और ब्याज की अदायगी नहीं हो पाती। अब सवाल ये है कि क्या शादियां सादगी के साथ नहीं हो सकती। तो लोगों के अलग-अलग जवाब मिलने शुरू हो गये। जैसे:
तुम कर लेना, समाज में लोग क्या कहेंगे, हमारे बहुत अरमान है हम क्यों करे भला। हमरे एक लड़िकवा बा धूमधाम से न करब। कुछ जगह ऐसे नियम हैं लेकिन ये हमारे सोच में भी शामिल हो जाये तो एक लड़की के बाप-माँ न जाने कितने जिल्लत उठाने से बच जाये। दहेज कोई न मांगे ऐसे कुछ गांव में नियम है लेकिन उस नियम को लोगों ने नकद में तब्दील कर दिया या शादी के पहले ही दहेज का सामान वसूल लेते हैं, जिससे गांव वालों को पता न चले। और किसी बेबस बाप को कर्ज के नीचे दबा देना। यह एक तरह से जुल्म ही तो है। अगर मुँह खोल कर सामने से मांगे या ख्वाहिश जाहिर करता हो।
समाज को शादी कराने के कुछ नियम जरूर बनाने चाहिए, जैसे निकाह में चंद लोग जाये और रुक्सत करा कर लड़की को ले आये। उसके बाद वलीमा की दावत में जो भी अरमान निकालने हो दिल खोल कर खिलाये। अब के हालात को देखते हुए जागरूक नागरिक बनने की आवश्यकता है। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि
घर वाले बच्चियों के पैदा होते ही उसे बोझ समझने लगते हैं। ससुराल में बहु की दो बेटियां हो गयी तो कितने लोगों के दिल में नफरत पैदा हो जाती है। और उसे ताना दिया जाने लगता है। कि इनका खर्च कौन उठाएगा। तुम्हारा बाप हम लोगों के कलेजे पर मूंग दलने के लिये भेज दिया है वगैरह- वगैरह।
मध्यम वर्ग समाज में बेटियों को बोझ मानने का एक कारण ये भी है कि इनकी शादी कैसे होगी। दहेज के खर्च कौन उठाएगा। सरकार चाहे कितना भी स्लोगन दीवारों और वाहनों पर लिखवा दे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जबतक की लोग यह बात दिल से तस्लीम न कर लें कि दहेज लेकर वो किसी बाप और घर पर कितना बड़ा अज़ाब डाल देते हैं। और किसी के ऊपर दुखों का पहाड़ डालकर करके खुद का घर स्वर्ग जैसा नहीं बनाया जा सकता।
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घर के हालात कई मोड़ से टकराते हुए दिखाई देते हैं। पैसे थोड़े होने पर अगर पत्नि उसका घर के किसी काम में लगा दे तब भी पति का चिल्लाना जायज मालूम होता है। किसी वक़्त फ़ाक़ा से गुजारा करना पड़े तो ये कोई नई बात नहीं होती।
घर में माँ का किरदार अहम होता है। इनके पास सहनशक्ति है तो घर में कुछ न होते हुए भी आबरू ढकी रहती है। यहां तक कि पड़ोसी तक को पता नहीं चल पाता कि इनके घर के लोग क्या खाते हैं। पति का गुस्सा, मां बच्चों पर कभी बेलन या चिमटे से निकालती हैं। अगर राशन नहीं है तो शाम को दाना खिला कर सुला देती है और कहती है अभी सो जाओ सुबह कुछ इंतजाम हो जायेगा। फसल के सीजन में कुछ गेहूं और चावल खरीदने के लिए पैसे इकट्ठा करना पड़ता है। कुछ बाजरे और गेहूं को मिला करके रोटी बन जाया करती है। साथ में कभी सब्जी या अक्सर चटनी का इंतजाम हो जाता है। और अगले दिन सब कुछ भूल कर बच्चे स्कूल को चले जाते हैं। फिर शुरू होता है स्कूल का माहौल, अक्सर फीस न मिलने पर मास्टर का कहना कि जिसके फीस जमा नहीं हैं वो खड़े हो जाये। उसके बाद सबके सामने खड़ा करके जलील करना और डंडे मारना। और नाम काटने या एग्जाम में बैठने से रोकने की धमकियां देना। इस तरह के कार्यक्रम चलते रहते हैं। घर आते ही बस्ता(SCHOOL BAG) उतार करके फेंक देना और कहना कि मेरी फीस जमा नहीं हुई तो मेरा नाम काट दिया जायेगा। और भी नाना प्रकार की बातें सुनाना। और यह सब अक्सर मां के सामने ही होता है। और माँ कहती है ठीक है मैं बात करती हूं तुम्हारे पापा से कुछ पैसे भेजने के लिए।
घर में किसी मेहमान की दस्तक होती है तो कुछ उधार लेकर उनके आवभगत में कोई कमी नहीं छोड़ी जाती है। उनके लिये बढ़िया पकवान बनाये जाते हैं। घर में छोटे बच्चें काफी खुश मालूम होते हैं कि आज कुछ अच्छा खाने को मिलेगा। हालांकि कुछ ऐसे भी मध्यम वर्ग परिवार होते हैं जिनमें वो किसी की परवाह नहीं करते हैं चाहे जितना कर्ज हो जाये। बढ़िया खाने के शौकीन, लोगों की गालियां सुनने के आदी से होते हैं। यदि उधार मिलने के हवा कहीं से गुजर जाये तो वहाँ पहुँच जाते हैं। दुकान पर कर्ज से दबे रहते हैं।
पिता का किरदार घर पर साया की तरह होता है। हर मुश्किल वक़्त में बच्चों को सहारा देने वाले और कोई गलती भी हो जाये तो थोड़ा गुस्सा होकर समझाने का काम भी करते हैं। इसके साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के Example देकर हौसला बढ़ाने की कोशिश करते हैं। यदि बच्चों की किसी सामान या पैसे को लेकर फरमाइश होती है तो उसे पूरा करने की पूरी कोशिश करते हैं। तमाम ठोकरें खाने के बाद भी नहीं टूटते लेकिन अपना कोई ताना दे दे या तोहमतें लगा दे। ये एक तरह का अज़ाब मालूम पड़ता है। जैसे कोई चट्टान रेजा-रेजा हो गया हो। कई बार सदमें की हालत से गुजरना पड़ता है। धड़कने रुक सी जाती हैं और बीमारियों का दौर शुरू हो जाता है। जिनमें डिप्रेशन, बीपी, शुगर का शिकार होना पड़ता है।
भाइयों का किरदार थोड़ी खट्टी-मीठी यादों के सहारे चलता मालूम होता है। यदि आप थोड़ी भी नादानियां दिखाते हैं तो आपकी क़द्र नहीं की जाती है और आपको लोग मजाक में लेना शुरू कर देते हैं। घर के हालात को जो बच्चे समझने लगते हैं उनके अंदर घर वालों को खुश देखने की इच्छा होने लगती है। घर के बड़े भाई की जिम्मेदारियां सबसे अधिक होती हैं। वो अपने बारे में सोचना छोड़ देते हैं और आधी से ज्यादा जिंदगी घर के तमाम जरुरतों को पूरा करने में वक्फ कर देते हैं। इसके साथ ही साथ उन्हें कुछ बीमारियां उपहार स्वरूप मिल ही जाती हैं। छोटे भाइयों के हर जरूरत का ख्याल रखने में माहिर होते हैं। तथा उनके गलतियों को माफ करने या पर्दा करने में बड़े उस्ताद मालूम होते हैं। और इस तरह एक भाई दूसरे के राज के पासदार बन जाते हैं।
मध्यम वर्गीय छात्र का जीवन भी काफी रोमांचक दिखायी देता है। जॉब के बारे में सोचना, अगर ढंग का न मिले तो दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है। किसी तरह से घर में एक लड़का थोड़ी अच्छी पढ़ाई भी कर ले तो नौकरी के लिये भटकना पड़ता है। ऐसे घरों में अधिकतर इंटर या बीए. पास बच्चे मिल जायेंगे। और उस पढ़ाई का आगे की लाइफ में कोई खास इस्तेमाल नहीं मालूम होता है। यदि कोई टेक्निकल कोर्स करने की इच्छा होती है तो पॉलीटेक्निक कॉलेज का चुनाव करते हैं। पॉलीटेक्निक कॉलेज अब केवल नाम मात्र एक संस्था मालूम होते हैं। वही स्टूडेंट कुछ सीख पाते हैं जिन्होंने 2 से 3 महीने का summer training किया हो। बाकी 2 या 3 साल के कोर्स में उन्हें केवल लॉलीपॉप दिया जाता है।
अभी हाल ही 2020 में टेक्निकल बोर्ड ने यह निर्णय लिया जिस कोर्स में बच्चें कम admission ले रहे हैं उन कोर्स को हटा दिया जाये। जाहिर सी बात है जिस कोर्स को करके किसी स्टूडेंट की जॉब न लगे तो वो किसी और को यह सुझाव क्यों दे कि तुम भी कर लो। यह बात मैंने बहुत करीब से नोटिस किया कि कोई भी teacher एक या दो subject में काफी महारथ हासिल कर सकता है। M.Tech qualified teacher पढ़ाने के लिये आते थे, लेकिन पढ़ाने के लिए जिस Subject पर चयन होता है। उसका विपरीत उसे Collage की तरफ से Subject दे दिया जाता है। शुरू में घर से होमेवर्म करके पढ़ाने को आते हैं धीरे-धीरे केवल थ्योरी Section के मास्टर बन कर रह जाते हैं। और प्रैक्टिकल को किसी ताक के सहारे लटका दिया जाता है। उदाहरण स्वरूप C & C++ में जो पढ़ाया जाता है। ठीक वैसे ही Java में केवल program बनाना सिखाया जाता है। सॉफ्टवेयर बनाना तो दूर उसका एक डेमो देना भी जरूरी नहीं समझा जाता है। Electronic वाले Student Summer Training में रोबोटिक वर्क करते हैं तो प्रायः C & C++ के कोडिंग से उसका movement सेट करते हैं। Lighing Effect , झालर बत्ती का movement क्या होता है। इनको सिखाया जाता है, लेकिन अपने सर केवल प्रोग्राम से चाय बनाते रह गये। और उन्हीं को एक और Subject दिया गया। Dot Net, और Viusual Basic इन language Subject की इन्होंने अच्छे से लगा दी। Knowledge के नाम पर शून्य हासिल हुआ। इसके बाद Database वाले सर की क्लास चली। एक ऐसा Teacher पढ़ाने आता है जो केवल थ्योरी याद करने को देता है और न याद होने पर सबके सामने बेंच पर खड़ा करवा देता है। जलील करते-करते क्लास कब खत्म हो जाती थी पता नहीं चलता था। Practical फिर से गायब हो जाता था। और Database का काम क्या होता है ये भी समझ नहीं आता। एक गरम स्वभाव के HOD, Computer Operating पढ़ाने आये इन्हें केवल अपनी तारीफें करना तथा उन्होंने अपने लाइफ में कौन से झंडे गाड़े हैं केवल उन्हीं बातों की चर्चा करना बेहतर लगता था, मानो हम किसी शिव चर्चा में बैठे हो और वो प्रवचन दे रहे हो। Windows Operating तो दूर Linux में केवल Shell और Kernel के अलावा कुछ भी नहीं पढ़ाया गया। collage खत्म होने के बाद मालूम चला कि अधिकतर MNC Comapny Linux के Command पर कार्य करती हैं। बहरहाल उन्हें शायद यकीन था कि मेरे स्टूडेंट उस लेवल तक कहाँ पहुँचने वाले हैं। और उन्हें लगता था कि स्टूडेंट्स को गौरवान्वित महसूस करना चाहिए कि उन्हें एक अनुभवी Head of Department के एक Teacher पढ़ा रहे हैं। कमाल की बात तो ये है कि चार क्लास में पूरा Subject खत्म कर दिया गया। उसके बाद वो भी ईद का चांद हो गये । इसके बाद एक नरम स्वभाव के HOD की बात कर लें इन्होंने यह निर्णय लिया कि वो Office Tools Subject पढ़ाएंगे। उन्होंने office 2003 पढ़ा था, लेकिन 2016 में Office 2013 आ चुका था, जिसपर मेरा command बढ़िया था चूंकि मैंने खुद प्रैक्टिस किया था उस सॉफ्टवेयर पर। आशा यही था कि वो कुछ advance फॉर्मूला जरूर बताएंगे। कोई सॉफ्टवेयर Excel और Visual Basic के कॉम्बिनेशन से सिखाएंगे। Macro टॉपिक का advance Work बताएंगे, कुछ नया Access में डाटाबेस का कार्य सिखायेंगे, लेकिन यहां से भी ना उम्मीद लौटना पड़ा।
forth Semester में एक और Subject इन्हीं के हवाले से पढ़ना था Data Structure, लेकिन पूरे सेमेस्टर Push और Pop सीखते रहे। कुछ प्रोग्राम बनाना भी सीखा, लेकिन इसका वास्तविक दुनिया में क्या प्रयोग है ये अब तक नहीं जान सके। अब Computer Organization Subject के बारे में न बात करें तो ये mam का अपमान ही होगा न। ऐसा लगता था कि वो भी हमलोग की तरह यहां पढ़ने आयी हो। थ्योरी section कवर करते-करते पूरा सेमेस्टर खत्म हो गया। कम से कम सर्किट कॉम्बिनेशन, कैसे डेटा सर्किट से ट्रेवल करता है, motherboard का structure कुछ तो सिखाया होता, लेकिन practical के नाम पर यहां भी शून्य हासिल हुआ।
अब Data Communication Computer Network पढ़ाने के लिए एक Teacher काफी जोश में आते है। उनसे काफी उम्मीदें हमसब ने रखी थी कि वो कुछ Practical का हिस्सा जरूर शेयर करेंगे। एक radio Station बनाना कम से कम बताएंगे। कौन-सा केबल, कौन-सा IP Address, Gateway, Mac Address, Private IP Address, DNS कैसे बनता है या कैसे काम करता है। इन सब की जानकारियां देंगे, लेकिन इसका विपरीत हुआ। उनके आने के ठीक दो महीने बाद Technical Board me Teachers का Election शुरू हुआ। उसके बाद उनका Class में आना-जाना कम होने लगा था। अब Practical लैब की भी बात कर लें। हा उस लैब में गीता mam थी। मैं उन्हें गीता माँ कहा करता था। Lab के हालात भी कुछ ठीक नहीं थे। दो Computer लैब थे। यदि बिजली चली जाये या उन्हें कहीं मिटिंग पे जाना हो, तो लैब अक्सर बन्द रहता था। एक-एक लैब Assistant के पास collage की सभी प्रकार के नोटिफिकेशन की पूरी जिम्मेदाररियाँ होती थी। जब कभी जिम्मेदारियों से मुक्त होते थे तो थोड़ी मदद के लिए आ जाते थे। जब hardware सीखने की बारी आयी तो 1990 मॉडल का CPU हाथ में दे दिया गया कि लो सीख लो। जब मैंने कहा कि मैम हम लोग 2016 में पढ़ रहे हैं और ये इतना पूराना इसमें क्या सीखेंगे। तो सरल शब्दों में उत्तर मिला। बेटा नया issue नहीं हो पायेगा। जो भी सीखना हो इसी में सीख लो। अब सिखायेगा कौन समझ नहीं आ रहा था। दो - चार दिन बाद मेरी टीम ने वापस करने का फैसला किया और वापस कर आये। फिर मैंने खुद से सवाल किया कि
अब न hardware repairing सीखा न ही सॉफ्टवेयर बनाना फिर हम लोगों ने इस Teachnical कॉलेज में addmidsion ही क्यों लिया। जैसा कि मैंने पहले कहा था कि जिन स्टूडेंट ने Summer Tranning 2 से 3 महीने का किया था। वही कुछ practical के बारे में जान पाये। कि वास्तव में इन Subject का Use भी है। final सेमेस्टर में Placement की बारी आयी। 7 कंपनी कॉलेज परिसर में दस्तक दी, जिनमें 6 Coaching वाले थे जिनके बारे में पहले से हमलोग के सीनियर बता चुके थे। ये summer Trainning करवाने की जिम्मेदारी लेते थे। एक कंपनी ऐसी थी जिसकी सैलरी 7 से 8 हजार रुपये लखनऊ शहर में थी। यह देखकर बदन में मानों आग लग गयी और placement से भरोसा ही उठ गया। मैंने यह निर्णय लिया कि हम में से कोई इस placement में हिस्सा नहीं लेगा। और कोई गया भी नहीं। सवाल यही उठा कि जॉब किसकी लगी तो अपने batch से किसी की नहीं। कोर्स complete होने के बाद, 2 से 3 बंदों ने summer training को 4 से 5 महीने तक continue किया। तथा उसी में पढ़ाने का काम भी किया। वो बंदे अब कुछ पैसा कमाने लगे हैं।
मै सभी Teachers को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता, लेकिन अफसोस तो होता है, क्योंकि इतने सारे बच्चों का भविष्य इन्हीं के हाथों में होता है। दो वर्षीय डिप्लोमा में किसी Teachers ने एक बार बार भी अपने subject का जिक्र Practical से नहीं किया। Java पढ़ाने वाले Teacher से जब मैंने सवाल किया कि सर Railway प्लेटफॉर्म पर जो announcement होता वो किस सॉफ्टवेयर पर डिज़ाइन किया जाता है। उनका यही जवाब मिला बाद में बताते हैं। मुझे याद मैंने यही सवाल पांच बार किया जवाब में कोई खास रिजल्ट नहीं मिल सका। चूंकि आज मालूम होता है कि Java Programming Language से पूरा एंड्रॉयड System Develop होता है। तो किसके नादानियों पर अफसोस करते अपने या उनके।
जिन student के घर वाले बीटेक का खर्च उठा लेते हैं तो उन्हीं बच्चों की कहीं जॉब लग पाती है। बाकी सब ठेंगा दिखाते हुए मालूम होते हैं।
मिडिल क्लास बन्दे अक्सर लोहा लाइन या किसी फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूरी का चुनाव करते हैं। 10 से 12 घण्टे काम करके 14 से 15 में घर या किराये के कमरे पर पहुचना होता है। खाना बनाने, खाने-पीने में 2 से 3 घण्टे वक्फ हो जाते हैं। कुछ देर सोशल मीडिया के सहारे दिल बहलाते हुए सो जाते हैं। और अगले दिन उसी लाइफ साईकल में सवार होकर घूमते रहते हैं। और इस तरह से जवानी के दिन किसी ख्वाब की तरह टूट जाते हैं। उसके बाद घर वालों को बच्चों के शादी की फिक्र होने लगती है।
सरकारी स्कूलों से शिक्षा प्राप्त करके अब कौन से झंडे गाड़ेगा। पढ़ाई के नाम पर ठेंगा दिखाया जाता है और उसका बैकग्राउंड, बेस सब कुछ खराब कर दिया जाता है। गणित विषय से डर लगने लगता है। यूँही मस्तियों में क्लास 8 निकल जाता है। न जाने कितने बच्चे पढ़ाई छोड़ कर किसी बेगारी के काम में लग जाते हैं। कुछ हौसला करके 9वीं में एडमिशन ले लेते हैं, लेकिन कुछ विषय उन्हें बार-बार परेशान करते हैं। अब इतने पैसे तो घर पर नहीं होते कि ट्यूशन फीस afford करें। लड़का भी धीरे-धीरे समझदार होने लगता है और sacrifice करने का निर्णय लेने लगता है। घर की हालात से समझौता करना सीख जाता है।
अब बात करे ग्राम प्रधान की तो जब कोई भी सरकारी योजना पास होती है तो जनता तक पहुचाने के लिये मोटी रकम वसूलने का काम किया जाता है। अब 'हर घर शौचालय योजना' को ही देख लीजिए 12000 रुपये पास हुए। उसके बाद प्रधान जी द्वारा कमीशन घर-घर जाकर वसूलने का काम भी हुआ। किसी से 3000 तथा किसी से 2000 रुपये लिया गया।
गांव में किसी का पेंशन बनवाना हो, जैसे वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, विकलांग पेंशन तो इनसे भी एक महीने का पेंशन लेने के वायदे पर मुहर लगायी जाता है। प्रत्येक गांव में एक पंचायत भवन होना चाहिये जिसमें ग्राम प्रधान, सचिव, और एक सहायक होना अनिवार्य होता है, लेकिन यहां उल्टा कहानी दर्शाया जाता है। गांव में पंचायत भवन खंडहर में तब्दील मालूम होता है। सचिव का चेहरा गांव के किसी व्यक्ति ने शायद ही किसी ने देखा हो। कोई काम कराना हो तो दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है। नवजात के जन्म प्रमाणपत्र के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं। इसके साथ ही साथ ब्लॉक या तहसील के चक्कर लगाने पड़ते हैं। यदि कोई पेंशन ब्लॉक ऑफिसर की लापरवाही से शुरू नहीं हुआ है तो गांव में किसी न किसी व्यक्ति से यह मालूम हो जाता है कि आपका पेंशन शुरू हो सकता है, लेकिन कुछ खर्च करना पड़ेगा। पूछने पर कितना तो जवाब में यही मिलता है कि 2 महीने का पेंशन देना पड़ेगा। कन्या की शादी से सम्बंधित सहायता से सम्बंधित फॉर्म भरा जाता है तो यही सौदा किया जाता है कि आपका काम तो हो जाएगा लेकिन इसमें से 10 हजार कम मिलेगा, क्योंकि बाकी लोगों को भी खिलाना पड़ता है। आप तो जानते ही हैं! यह बात कितनी बेशर्मी के साथ बोल जाते हैं। अब मिडल क्लास व्यक्ति यही सोचता है। जो मिल रहा है वही स्वीकार कर लें। वरना सरकारी बाबू नाराज़ हो गये तो वो भी नहीं मिलेगा।
अब कोटेदार की बात करें जिसका काम राशन वितरण का होता है। इतनी धांधली होने के बावजूद कोई भी आवाज नहीं उठा सकता। इनकी प्रॉपर्टी हर महीने बढ़ती जाती है। अब राशन का माप हमेशा की तरह कम रहता है यहाँ तक की 2 से 3 kg का घपला कर देता है। जब कोई आवाज उठाने की कोशिश भी करता है तो घर वाले समझा देते हैं कि ऐसा न करो वरना राशन कार्ड से वो लोग नाम कटवा देंगे। एक बार मैंने SDM से शिकायत भी लगायी, लेकिन उसका खास परिणाम न रहा। चूंकि उनकी शिकायत सुनने वाला कोई नहीं होता है। इसलिए गांव के लोग किसी ठोस कदम उठाने से पहले अक्सर डर जाते हैं। गांव के कुछ खास लोगों को 1 से 2 बोरा अनाज दे देता है, जिससे कोई भी आवाज उठाये तो ये कोटेदार की हिमायत करने लगते हैं। ग्राम प्रधान के घर का अलग से ख्याल रखा जाता है इसलिए उनका विपरीत होना न होना एक बात सा लगता है।
यदि सरकारी महकमें में कोई व्यक्ति बिना घुस के काम कर दे तो इसे घोर अपमान माना जाता है। 10th की मार्कशीट में बोर्ड की लापरवाही से नाम गलत हो गया तो अब बोर्ड ऑफिस के चक्कर लगाने पड़ते हैं। 2019 में सहज जन सेवा केंद्र के माध्यम से UPMSBP वेब पोर्टल पर एक ऑप्शन add किया गया कि जिस किसी को correction करवाना हो फॉर्म भर सकता है। तथा 30 दिन के भीतर result प्राप्त करे। 200 रुपये देकर मैने भी फरवरी 2019 में apply करवाया। 2020 आ गया लेकिन बोर्ड आफिस से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई। एक बात कमाल की है कि वहां कोई भी सीधी मुँह बात तक नहीं करता। शायद ही 1 या 2 Employee ईमानदार हो, क्योंकि सभी के अपने-अपने रेट फिक्स हैं Signature का 500 रुपये, कुर्सी से उठने का 500 रुपये, ऑनलाइन upload करने का 2000 रुपये इत्यादि। यहां जगह-जगह पान खा करके दीवार को रंगने की प्रथा मालूम होती थी। जिस किसी से कुछ पूछो तो कहते बाहर पता कर लो। बोर्ड ऑफिस के कई बार चक्कर लगाने से जब कोई फायदा न मिला तो अंत में 4000 रुपये देने पड़े जिससे एक महीने की भीतर मार्कशीट collage पहुँच गया।
@SabeelAhmad
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